जड का चेतन से क्या नाता।।ध्रु।।
जड जड है, चेतन चेतन है।
एक शुद्ध औ’ एक मलिन है।
तम में कैसे हो सकती है।
चित्प्रकाश भासकता।।१।।
मैं ‘मैं हूँ’ यह ज्ञान मुझे है।
क्या अपना कुछ भान उसे है?
पुष्प अचेतन कैसे जाने।
निज गंधित सुंदरता।।२।।
जड में है प्रतिपल परिवर्तन।
नष्ट हो रहा है वह प्रतिदिन।
चेतन की शाश्वत चिद्घनता।
से उसकी क्या समता।।३।।
जड मन, जड धी, जड काया है।
उस पर प्रभु की चिच्छाया है।
वही ‘ज्ञान’ की जडमति से भी।
लिखवाती है कविता।।४।।
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