प्रभु तुम मेंरी बुद्धि मिटा दो।।ध्रु.।।
नहीं मुझें करना है चिंतन।
और न करना विचार मंथन।
व्यर्थ बोझ मेंरे सिर का यह।
प्रभु तुम आज हटा दो।।१।।
वाद-विवाद नहीं करना है।
और न कुछ आग्रह धरना है।
बंद करो इसकी गतिविधि या।
इसको मौन बिठा दो।।२।।
मति से होता मैं सन्मानित।
किंतु अन्य होते अपमानित।
अस्तु बुद्धि यह मिटे पूर्णत:।
ऐसा चूर्ण चटा दो।।३।।
व्यर्थ हुए अब तक सब निश्चय।
अस्तु किया अंतिम यह निर्णय।
मेंरी इस काया से प्रभु तुम।
अवयव एक घटा दो।।४।।
बुद्धि मिटी तो ‘ज्ञान’ मिट गया।
दर्प दंभ अभिमान लुट गया।
अब केवल माणिक माणिक का।
मीठा मंत्र रटा दो।।५।।
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