सखि, साड़ी आज भिगो ली।
भीगी अँगिया औ’ चोली।
मैं निपट निगोड़ी भोली, प्रभु से खेली क्यों होली।।ध्रु।।
वह चोर जार गिरधारी।
भर ले आया पिचकारी।
हँस हँसकर भर किलकारी।
रँग दी उसने ये साड़ी।
उस अजब गजब हमजोली से क्योंकर खेली होली।।१।।
सखि, रोक डगर पनघट की।
उसने फोड़ी यह मटकी।
औ’ तोड़ लाज घूंघट की।
मेंरी यह चुनरी झटकी।
मैं उसकी आँखमिचौली से तंग हुई औ’ रो ली।।२।।
उसने ही मुझको पकड़ा।
बाँहों में लेकर जकड़ा।
वह छैल छबीला तगड़ा।
मैं कर न सकी सखि, झगड़ा।
सखि, पकड़ मरोड़ हथेली की उसने ढीठ ठिठोली।।३।।
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