आँखों से देखी दुनिया, पर आँखों को देख न पाए हम। आँखों को देख सकें ऐसी आँखें अब कैसे लाएँ हम।।ध्रु.।। आँखों की खिड़की के पीछे बैठा जो सब कुछ...

आँखों से देखी दुनिया, पर आँखों को देख न पाए हम। आँखों को देख सकें ऐसी आँखें अब कैसे लाएँ हम।।ध्रु.।। आँखों की खिड़की के पीछे बैठा जो सब कुछ...
जड का चेतन से क्या नाता।।ध्रु।। जड जड है, चेतन चेतन है। एक शुद्ध औ’ एक मलिन है। तम में कैसे हो सकती है। चित्प्रकाश भासकता।।१।। मैं ‘मैं...
नहीं दिखाई देता मुझको जगत कहीं भी भाई। मुझे तो ब्रह्म देत दिखलाई।।ध्रु.।। निराकार निर्गुण की छवि ही सगुण रूप धर आई। उसीने बहु बन सृष्टि...
प्रभु तुम मेंरी बुद्धि मिटा दो।।ध्रु.।। नहीं मुझें करना है चिंतन। और न करना विचार मंथन। व्यर्थ बोझ मेंरे सिर का यह। प्रभु तुम आज हटा...
माणिक माणिक जपनेवाला माणिक ही बन जाता है। ध्यान ध्येय का धरकर ध्याता ध्येय स्वयं बन जाता है।। माणिक माणिक जपने से मैं इसीलिए कतराता हूँ।...
निज चरणों से प्रभु ने मुझको जोड़ा औ’ ब्रह्म बनाकर छोड़ा। निज माया के गठबंधन को तोड़ा औ’ भ्रम के घट को फोड़ा।।ध्रु।। मुझ पापी को प्रभु ने गले...
सखि, साड़ी आज भिगो ली। भीगी अँगिया औ’ चोली। मैं निपट निगोड़ी भोली, प्रभु से खेली क्यों होली।।ध्रु।। वह चोर जार गिरधारी। भर ले आया पिचकारी।...
तू स्पंदन है मेंरे उर का, तू श्वासों का अनुगुंजन है। आलंबन है तू जीवन का, मैं सीता तू रघुनंदन है।।ध्रु.।। जड काया को निज माया से, तू कर...
प्रभु तुम्हारे पदकमल पर मन सदा एकाग्र हो। कार्य यह अविलंब हो, प्रभु शीघ्र हो अतिशीघ्र हो।।ध्रु.।। वानरों सा कूदता मन वृक्ष से दीवाल पर। इस...
छीनी मेंरी देहवासना। औ’ छीनी है अहंभावना। बिना देह औ’ बिना अहं के कठिन हो गया जीना।।१।। दृष्टि सृष्टिदर्शन की छीनी। वृत्ति बुद्धि औ’ मन की...
जगत् यह माणिकमय है भाई। जो जो देत दिखाई, वह सब माणिकमय है भाई।।ध्रु.।। जो जो कुछ ‘है’ ‘है’ कहलाता। नामरूप अपना दिखलाता। वह सब प्रभुमय है...
देख न सकतीं आँखें जिसको मैंने उसको देखा है। दिखा रहा जो सब में खुद को मैंने उसको देखा है।।ध्रु।। अब तुम मुझसे ये मत कहना “बतलाओ वह कैसा...